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https://www.jagran.com/news/national-when-subba-rao-surrendered-after-converting-several-hundred-notorious-rebels-of-chambal-jagran-special-22160451.html
रवि नितेश। Dr. SN Subba Rao शांति और सद्भावना के सिपाही डा. एसएन सुब्बाराव का 92 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। उनका देह त्याग कर निकल जाना ऐसा था कि जैसे जय जगत का नारा लगाते हुए जय ब्रह्मांड के उद्देश्य के लिए निकल पड़ना। एक आध्यात्मिक मुस्कान, एक युवा ऊर्जा, अथाह विन्रमता और प्रेम उनके साथ जुड़कर जैसे सार्थक दिखते थे। जीवनभर उन्होंने एकता का प्रयास किया और उनके निर्वाण पर सबने एक होकर उन्हें विदाई दी।
राष्ट्रीय युवा परियोजना के संस्थापक और गांधी-विनोबा-जयप्रकाश की संस्कृति के वाहक सुब्बाराव को कई लोग जीवित गांधी मानते थे। अपने जीवन को देश, राष्ट्रीय एकता, धार्मिक सामाजिक सद्भावना के लिए आहूत कर देने वाले सुब्बाराव अपने अंतिम समय तक सामाजिक उद्देश्यों के लिए देश भ्रमण करते रहे। युवा शिविरों के माध्यम से उन्होंने देश के लाखों युवाओं का अहिंसा, सद्भाव, राष्ट्रीय एकता और विविधता के साथ एकात्म करवाया।
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान महज 13 वर्ष की आयु में दीवारों पर वंदे मातरम लिखने के कारण ब्रिटिश पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिए जाने वाले सुब्बाराव आजादी के बाद भी अपने शांति-क्रांति- सद्भावना के गीतों के कारण युवाओं में खासे लोकप्रिय रहे। सुब्बाराव बहुभाषी, मृदुभाषी और मितभाषी के रूप में जाने जाते थे। वर्ष 1969 में गांधी की जन्म शताब्दी वर्ष में सुब्बाराव ने गांधी दर्शन ट्रेन चलाकर पूरे देश में एकता और सद्भावना के गांधी विचारों के लिए लोगों को संदेश दिया।
इस यात्रा में उनके साथ युवा स्वयंसेवकों का एक काफिला बन गया, रास्ते भर लोगों ने स्वागत किया और यात्रा समाप्त होने के बाद बची हुई रकम से उन्होंने गांधी आश्रम की स्थापना की। व्यक्तिगत लोभ और मोह से दूर सुब्बाराव को दुनियाभर में आदर सत्कार मिला। गांधी और विनोबा के अहिंसात्मक विचार को केवल किताबी मानने वाले लोगों को सुब्बाराव के प्रयासों से अहिंसा का मानस दर्शन समझने में सहायता तब मिली जब सुब्बाराव ने चंबल के कई सौ कुख्यात बागियों का हृदय परिवर्तन करके चंबल स्थित अपने आश्रम में आत्मसमर्पण कराया।
इस दौरान वहां जयप्रकाश नारायण समेत हजारों नागरिकों की भीड़ यह देखते हुए स्तब्ध थी कि कैसे एक के बाद एक कुख्यात बागी जिनकी पूरे इलाके में दहशत थी और जिनके सिर लाखों का इनाम था, वो चुपचाप आते और अपने हथियारों को गांधी प्रतिमा के चरणों में डालते व समर्पण कर स्वयं को प्रशासन के हवाले कर देते। बिना हथकड़ी के, स्वप्रेरित होकर, न्यायालय में बेङिाझक होकर अपना अपराध स्वीकार कर लेने वाले और फिर जेल में भी श्रम करते हुए, सवरेदय की विचारधारा पर साफ सफाई कर रहे ये डाकू हृदय परिवर्तन के प्रयासों की मिसाल बने रहे और सुब्बारावजी उनके लिए भाईजी थे। बिना किसी निजी संपत्ति के अपना सबकुछ देश को न्योछावर कर देने वाले सुब्बाराव जिससे मिलते बस उसके हो जाते।
जब कभी भाईजी से मिलना हुआ, उन्होंने खूब प्रेरित किया। हमेशा उत्साहवर्धन करते रहते। किसी भी कार्यक्रम के दौरान देशभक्ति के गीतों से वे लोगों में एक नया जोश भर देते थे। उनका यह पूरा प्रयास रहता था कि जो भी कोई उन्हें कुछ लिखता, उसका वह जवाब अवश्य देने का प्रयास करते। हाल ही में सीमांत गांधी पर उन्हें अपना एक लेख भेजा तो उन्होंने बताया कि उनकी कुछ समय की एक रोमांचक मुलाकात सीमांत गांधी से हुई थी।
डा. सुब्बाराव की एक बड़ी विशेषता यह रही कि वह कुछ भी अपना निजी नहीं मानते थे। दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान के एक कमरे में आकर ठहरना और काम करना और फिर देश के दूसरे कोनों में चले जाना उनका जीवन रहा। इस खास कमरे में देश-विदेश से उनको मिले इतने सम्मान सजे हुए हैं कि उनका सहेजा जाना कठिन है। यात्र उनकी नियति थी। अब वह एक अनंत यात्र पर चले गए हैं। अपने पीछे कार्यो का एक भंडार छोड़कर, जो लोगों को करते रहना है।
देश के हर कोने में भाईजी ने युवा शिविर लगाए हैं। देश के लगभग हर प्रांत की भाषा उनको आती थी और साथ ही कई विदेशी भाषाएं भी जानते थे। वह जिससे मिलते, उसकी भाषा में बात करने का प्रयास करते। श्रीनगर के लालचौक पर अति तनावग्रस्त समय में भी सर्व धर्म प्रार्थना करने पहुंच जाने का साहस हो या कुमार गंधर्व जैसे प्रसिद्ध संगीतकार को ‘गांधी मल्हार’ नामक नया राग रचने की प्रेरणा देना हो या फिर देश के हर कोने से विविध वेशभूषा वाले निवासियों को एक साथ मिलकर भारत की संतान और जय जगत का उद्घोष करना हो, भाईजी हर जगह अद्वितीय रहे।
अमेरिका में रहने वाले भारतीयों ने तो हर वर्ष भाईजी को कई दिनों तक चलने वाली एक कार्यशाला के लिए बुलाना शुरू कर दिया था ताकि विदेश में रहने वाले भारतीय बच्चे भारतवर्ष के मूल्यों, नैतिकता, विविधता, राष्ट्रीय एकता के विषयों को आत्मसात कर सकें। ऐसे ही बच्चों और युवाओं के एक वेबिनार के दौरान मैंने देखा था कि अंग्रेजी में सहज रहने वाले भारतीय मूल के विदेशी युवा कैसे जय जगत और भारत की संतान जैसे गीतों का गान कर रहे थे। अपने अंतिम समय तक सामाजिक चेतना हेतु सक्रिय रहने वाले सुब्बाराव आज भले ही अनंत की यात्रा पर निकल गए हों, पर एक ऊर्जा पुंज के रूप में यहां इतनी ऊष्मा बिखेर गए हैं जो हजारों लोगों को प्रेरित करती रहेगी।
(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं)